SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ बृहत् पूजा-संग्रह गुणधर, सकल आगम सागरा । युगप्रवर श्रीजिनचंदरि, गुरु सकलसूरीसरा ॥ ४ ॥ तसु चरण कमलज युगलसेवन, अहनिशि मधुकरता धरी । पुन सुगुरुपद, अरविन्द युगनी, कृपा नित चित आदरी। गणधार श्रीजिनहरपमरी, हरपधरि घन अघहरी । या वीस पदकी, विविध पूजन, विधि तणी रचना करी ॥५॥ __|| विशतिस्थानक आरती ॥ (तर्ज-जिया चतुरसुजाण नवपदके गुण गाय रे) । पिया विंशतिस्थान मंगलआरति गाय रे। सुमतिप्रिया कहे चेसनपतिको, निसुण वचन मन भायरे ॥ पि० ॥१॥ यदि निजगुण परिणति तुम चाहिये, तिणको एह उपायरे ॥ पि० ॥ अरिहंत सिद्ध आचारिज पाठक, साधु सकल समुदाय रे ॥ पि० ॥ २ । इत्यादिक विंशति पद समरण, भवभय हरण विधाय रे, एह आरती अरतिवारती, * अट्ठारसय तदुवरि इकोत्तर वरसभाद्रव मासए, परब विशद दशमी रविज वासर अजीमगंजपुर वासए, विंशति पदों की विविध पूजा विध तणि प्रति खासए। उवझाय शिवचंद्र गणियं लिखी मन उल्लासए ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy