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________________ बृहत् पूजा-संग्रह अभयसुपात्र महिराना ॥ हो भवि प० ॥६।। नरवाहन शुभ पात्र दानते, भये जिनहरष निधाना ।। हो भवि प० ॥ शालिभद्र बलि सुरसुख लहियो, सुर नर करय वखाना ॥ हो भवि प० ॥१०॥ काव्य ॥ अणंतविन्नाण विभाकरस्स, दुवालसंगी कमलाकरस्स। सुलद्धवासा जरगोयमस्स, णमो गणाधीसर गोयमस्स ॥१॥ ॐ ही श्रीगौतमाय नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा । ॥ षोडश वेयावच्चपद पूजा ॥ ॥दोहा॥ सोलम पदमें जाणिये, वेवाच्च विधान । अखिल विमल गुणमणितणो, सोहेप्रवर निधान । जिन सूरि पाठक मुनि, बालक वृद्ध गिलान । तपसी चैत्य संघकी करो, यावच्च प्रधान ।।.. ॥ राग जंगलो ॥ (तर्ज-मुने म्हारो कब मिलसे मनमेल दे० ) सेवो भाई, सोलमपद सुखकारी। श्रीजिनचन्द्र प्रमुख दशपद नो, करो वेयावच्च भारी ॥ १ ॥ श्रीतीर्थङ्कर . त्रिभुवन शंकर, अवर केवली हारी। मनपर्यवधर अवधि
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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