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________________ वीसस्थानक पूजा १२६ सघन करम कानन दहन, करन विमल तप जान । विपिन धूमकेतन समो, जय तप सुगुणनिधान ।। ॥राग कल्याण ॥ (तर्ज-तेरी पूजा बनी हे रस मे) . मेरी लगी लगन तप चरणे ।। मे० ॥ सकल कुशलमें प्रथम कुशल ए, दुरित निकाचित हरणे ॥ मे० ॥१॥ जैसे गणधरकी जिन चरणे, चातक की जलधरणे ॥ मे० ॥ जैसी चक्रयाककी अरुणे, चकोरको हिमकर फिरणे ॥ मे० ॥२॥ जिनवर पण तदभर शिर जाणे, त्रण च: नाण सुकरणे || मे० ॥ तदपि सुकोमल करण चरणने, ठत्रय कठिन तप करणे ॥मे०॥३॥ कपट सहित तप चरणधरणते, वांछित फल नवि तरणें ॥ मे० ॥ नित ए दम रहित तपपदके, सुरपति गण गुण वरणे ॥ मे० ॥ ४ ॥ पोठ महापीठ मुनि मल्लीजिन, पूरव भव तप शरणे ॥ मे० ॥ रहिया तदपि कपट नचि छंड्यो, भये स्त्री गोत्रावरणें ॥ मे० ॥ ५ ॥ प्रहारी पांडा घनकरमी, छंड्या करमावरणे ॥ मे० ॥ तपसे शोम लही त्रिभुपनमे, केवल कमलाभरणे ॥ मे० ॥ ६॥ लास इग्यारह असी हजारा, पचसय शर दिन ma ... .. mrt 2
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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