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________________ बृहत् पूजा संग्रह प्रतिपालनकों, कहि जिनवर नववारा हो ||भ०॥ दिन्योदारिक करण करावण, अनुमति विषय प्रकारा हो ॥ भ० ॥ १॥ त्रिकरण जोगें ए परिहरिये, भजियें भेद अढारा हो ॥ भ० ॥ कनक कोडिनो दान दिये नित, कनक चैत्य करतारा हो । भ० ॥ २ ॥ एहथी ब्रह्मचरज धारकनो, फल अगणित अवधारा हो ॥ भ० ॥ सहम चोरासी श्रमण दान फल, सम ब्रह्मवतफल सारा हो । भ० ॥ ३॥ विजयशेठ विजया शेठाणी, उभय पक्ष ब्रह्मधारा हो ॥ भ० ॥ भये सुदर्शन शेठ शीलसे, मुगतिवधु भरतारा हो ॥ भ० ॥ ४ ॥ सहस अढार शीलांगरथ धारा, धार करो निसतारा हो । भ० ॥ सिंहादिक वसुभय तरु अंजन, सिंधुर मद मतवारा हो ॥ भ० ॥ ५ ॥ कलहकारि नारदऋपि सरिखे, तो भवजलधि अपारा हो ॥ भ० ॥ पच्चरखाण विरति नहि एहमें, ए ब्रह्मत्रत उपगारा हो ॥ भ० ॥ ६ ॥ सकल सुरासुर किन्नर नरवर, धरिय भगति हितकारा हो । भ० ॥ ब्रह्मचरज व्रतधर नरवरके, प्रणमे चरण उदारा हो ॥ भ० ॥७॥ दशमे अंगे भणियो नवर्मा, नरपति गुण आधारा हो ॥ भ०॥ ब्रह्मचरज व्रत पाल लयो पद, जिनहर जयकारा हो ।। भ० ॥ ८ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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