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________________ १२० वृहत् पूजा संग्रह मतिनाण श्रुत पुनखधि, मनपरजय जाण । भा० । । । लोकालोक भाव प्रकाशी, वर केवलनाण ॥ भा० ||२|| पंच ए इकावन भेदे, कह्यो जिनवर भान । भा० । जगजीव जडता छेदे, ज्ञानामृत रस पान || भा० ॥ ३ ॥ विन ज्ञान कीधी किरिया, होय तसु फल ध्वंस | भा० । भक्षाभक्ष प्रगट ए करिये, जिम पय जल हँस ॥ भा० ॥ ४ ॥ वर नाण सहित सुकिरिया, करी फल दातार । भा० । हुवो ज्ञान चरण रसिला, लहो भवजलपार ॥ भा० ॥ ५ ॥ ज्ञानानंद अमृत पीधो, भरतेसर महाराय । भा० । तिणसें अमृत पद लीधो, सुरपति गुण गाय ॥ भा० ६ ॥ सेवी ज्ञान जयंत नरेश, भये जिन महाराज | भा० । सोहे ज्ञानए त्रिभुवन में, सहु गुणपरि सिरताज भा० ॥ ७ ॥ ॥ काव्य ॥ छद्दव्व पज्जाय गुणुक्करस्स, सया पयासी करणोद्धुरस | मिच्छत्त अन्नाण तमोहरस्स, णमो णमो नाणदिवायरस ||१|| ॐ ह्रीं श्रीज्ञानाय नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ ८॥ || नवम दर्शनपद पूजा || ॥ दोहा ॥ दरिसण आश्रय धर्म्मनो, एहनां षट् उपमान । दरसण विण नहि चरणविद, उत्तराध्य जाण ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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