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________________ ११६ वृहत् पूजा संग्रह ॥ कान्य ॥ सम्मत्तसंयम, पतित भविजन, अतिहि थिर करता भला । अवगुण अदूषित, गुण विभूषित, चंद्रकिरण समुज्जला ।। 'अष्टाधिकादश सहस शीलांग, रथ रुचिर धाराधरा । भव सिंधु तारण, प्रवर कारण, नमो थिविर मुनीसरा ॥१॥ ॐ ही श्री स्थविराय नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥५॥ || षष्ठ उपाध्याय पद पूजा ॥ ॥दोहा॥ प्रवरनाण दरसण चरण, धारक यतिधर्म सार । समितिपंच त्रिण गुप्तिधर, निरुपम धीरज धार ॥ चरण कमल जेहनां नमे, अहोनिश सुर नर राय ।। जड़तागिरिदारण कुलिश, जयजय श्रीउवझाय ॥ ॥ राग भैरव ॥ (तर्ज-पंच वरणी अंगी रची) भाव धरी उवझाया बंदो, विजयकारी । श्रीउवझाय परमपद वंदी, लहो जिनपद अतिशय धारी ॥ भा० ॥१॥ कुमति मदतरु भंजन सिंधुर, सुमतिकंद घन अवतारी । अंग दुवादस भणे भणावे, शिष्य भणी चित्त हितधारी ॥ भ० ॥ २ ॥ सकल सूत्र उपदेश दियणते, वाचक अति
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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