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________________ ११० वृहत् पूजा संग्रह ॥ द्वितीय श्रीसिद्धपद पूजा ॥ ॥दोहा॥ तनु त्रिभागके घटनतें, धन अवगाहन जास । विमल नाण दंसण कियो, लोकालोक प्रकाश ॥ अविनाशी अमृत अचल, पदवासी अविकार । अगम अगोचर अजर अज, नमो सिद्ध जयकार ॥ || राग सोरठ ॥ (चाल-कुँदकिरण शशि ऊजलो रे देवा ) अनुभव परमानन्दशु रे वाला, परमातम पद चंदों रे। करम निकंदो बंदीने रे वाला, लहि जिनपद चिरनन्दो रे ॥१॥ गगन पएसंतर चली रे वाला, समयान्तर अणफरसी रे। द्रव्य सगुण परजायना रे वाला, एक समय विध दरसी रे ॥ २ ॥ एक समय ऋजुगति करी रे वाला, भए परमपद रामी रे। भांगे सादि अनंतमा रे वाला; निरुपाधिक सुखधामी रे ॥३॥ अखिल करममल परिहरो रे वाला, सिद्ध सकल सुखकारी रे। विमल चिदानन्द धन थया रे वाला, वर - इकतीस गुण धारी रे ॥ ४ ॥ उत्पन्नता वलि विगमता रे
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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