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________________ (ब) बही प्रसन्न मुद्रा व्याख्यान का चलता कम, क्षणभर भी आराम का नाम नहीं, दर्शकगण वास्तव में देखकर आश्चर्य में डूब जाते थे जब वे देखते कि समता मूर्ति के मुखारविन्द से अमृत स्रोत भर रहा है। लगभग ढाई-तीन महीने हुए जब इस उग्र दाह ने अपना रूप डगला, गाँठ में से पानी, धीरे-धीरे वह खून के रूप में प्रवाहित होने लगा, दिन में ३-४ बार खून आना, पर आपकी वही सहज मुद्रा। सभी घबड़ा जाते, हलचल मच जाती पर वह शांत-मूर्ति वास्तव में मूर्ति के समान ही बैठी रहती और हलचल मचाने वालों को कहती हलचल किस बात की जो होने का कार्य है वह हो रहा है। परेशानी किसलिए? खून में लथपथ होने पर पाव-आधाकिलो खून के बहने पर भी चेहरे पर कोई शिकन नहीं उस समय भी कोई पूछता तो हँसते चेहरे से जबाब मिलता सदा आनन्द । देह का कार्य देह में हो रहा है, आत्मा में तो आनन्द है और यही चाहिए। कोई इस विषय की चर्चा करना चाहता तो एक-दो शब्द में उसका जबाब दे पुनः उपदेश में लग जाते। धन्य है ऐसे संत, धन्य थी उनकी साधना। वास्तव में वे इस व्याधि में जीत गई थी जैसा एक बार के प्रसंगवश बोली थी, "मैं जीत गई' वास्तव में कर्म शत्रु से संप्राम में विजय प्राप्त कर ली। धन्य है, ऐसी अद्भुत शक्ति सम्पन्न साधना-पथ की महान साधिका को कोटि-कोटि नमन् ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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