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________________ ६८ वृहत् पूजा संग्रह ज्ञान दान दे, सूरख थी पंडित करणं ॥ श्री० ॥ जगजीवनके हो प्रतिपालक, तुम विन अवर न आभरणं ॥ श्री० ॥ ७ ॥ विन कारण जग उपगारी, धन धन तुमरो आचरणं ॥ श्री० ॥ पंच परमेष्ठी महामंत्रको, इष्ट सदा दिलमें धरणं ॥ श्री० ॥ ८ ॥ धरम-विशाल दयाल पसाये, सुमति करे तुम नित वरणं ॥ श्री० ॥ नवनिध अडसिथ मंगलमाला, पूजत जगमें जस भरणं ॥ श्री० ॥ ६ ॥ ॐ ही परमात्मने सकल पाठक राजाय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा । || अथ साधुपद पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ पंचम पदमें शोभता, साधु सकल गुणवंत । गुण सतवीस विराजता, महिमावंत महंत ॥ स्याम वरण मुनिवर कह्या, तप करवा अति सूर । भविक कमल प्रतियोधता, धरता निरमल नूर ॥ || ढाल ॥ (चाल सदा सहाई कुशलसूरि०) सदा सहाई बीर पटोवर, सुणियो भविक उदार ॥ भलाजी गुरु, सु० ।। सुधरसा स्वामी अंतरजामी, तसु
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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