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________________ ६४ वृहत् पूजा संग्रह सयल मंगल अखे, जिनप आगे सुथानक धरे ए। तेरमी पूजविधि ते रमी मन मेरे, अष्टमंगल अष्टसिद्धि करे एर ॥२॥ ॥ राग कल्याण ॥ हांहो पूजा वणी तेरी रसमें । अष्ट मंगल लिखे, कुशल निधान है ; तेज तरणके रसमें ।। हां ॥ १॥ दप्पण भद्रासण नंद्यावत्ते पूर्णकुंभ, मच्छयुग श्रीवच्छ तसुमें । वर्धमान स्वस्तिक पूज मंगलकी, आनंद कल्याण सुख रसमें ॥ हां ॥ २॥ __॥ चतुर्दश धूप पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ गंधवटी मृगमद अगर, सेल्हारस धनसार । धरि प्रभु आगल धूपणा, चउदमि अरचा सार ॥ ॥राग वेलावल ॥ कृष्णागर कपूरचूर, सोगंध पंचे पूर। कुंदरुक्क सेल्हारस सार, गंधवटी घनसार ।। गंधवटी धनसार चंदन मृगमदा रस भेलिये, श्रीवास' धूप दशांग अंबर, सुरभि बहु द्रव्य मेलियै ॥ वेरुलिय दंड कनक मंडित, धूपधाणो
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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