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________________ पहला प्रकरण । १-भूख,२-प्यास, ३-शोक, ४-मोह, ५-जन्म,६-मरण इन छहों का नाम षटमि है। इनमें से भख और प्यास ये दो प्राण के धर्म हैं। शोक और मोह ये दो मन के धर्म हैं । जन्म और मरण ये दो सूक्ष्म-देह के धर्म हैं। तुझ आत्मा के धर्म ये कोई नहींजायते, अस्ति, वर्धते, विपरिणमते, अपक्षीयते, विनश्यति । ___अर्थात् जो उत्पन्न होता है, स्थित है, बढ़ता है, परिणाम को प्राप्त होता है, क्षण-क्षण में क्षीण होता है और नाश हो जाता है, ये षट्भाव-विकार स्थूल देह के धर्म हैं, तुझ आत्मा के धर्म नहीं हैं, क्योंकि तू सूक्ष्म देह से और स्थल-देह से परे है, और इन दोनों का द्रष्टा है, इसी से तू निर्विकार है, सच्चिदानन्द रूप है, शीतल है अर्थात् सुख-रूप है अगाध बुद्धिवाला है, अक्षुब्ध है अर्थात् अविद्याकृत क्षोभ से रहित है, अतएव तू क्रिया से रहित होकर चैतन्य-स्वरूप में निष्ठावाला है ।। १७ ।। अष्टावक्रजी ने उत्थान का दूसरे श्लोक में जनकजी को मोक्ष का उपाय इस प्रकार उपदेश किया कि विषयों को तू विष के तुल्य त्याग कर, और सत्य को तू अमत के तुल्य पान कर, परन्तु विषयों की ओर विष की तुल्यता में, और सत्यरूप आत्मा की ओर अमृत की तुल्यता में कोई भी हेतु नहीं कहा, अतः आगे उसको कहते हैं । मूलम् । साकारमनृतं विद्धि निराकारं तु निश्चलम् । एतत्तत्वोपदेशेन न पुनर्भवसम्भवः ॥ १८ ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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