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________________ बीसवाँ प्रकरण । का कार्य जगत् मेरे में कहाँ है ? वह भी तीनों कालों में मेरे में नहीं है ? और प्रीति तथा विरति भी मेरे में नहीं है ? और जीव तथा ब्रह्मभाव भी मेरे में नहीं हैं ? क्योंकि दोनों माया अविद्या-रूपी उपाधियों करके ही कहे जाते हैं। जब कि कोई भी उपाधि वास्तव में नहीं है, तब जीवभाव और ईश्वरभाव भी कहना नहीं बनता है ॥ ११ ॥ मूलम् । क्व प्रवृत्तिनिवृत्तिर्वा क्व मुक्तिः क्व च बन्धनम् । कूटस्थनिविभागस्य स्वस्थस्य मम सर्वदा ॥ १२ ॥ पदच्छेदः। क्व, प्रवृत्तिः, निवृत्तिः, वा, क्व, मुक्तिः, क्व, च, बन्धनम्, कूटस्थनिर्विभागस्य, स्वस्थस्य, मम, सर्वदा ॥ शब्दार्थ। अन्वयः। शब्दार्थ।। अन्वयः। सर्वदा सर्वदा __ क्व-कहाँ स्वस्थस्य-स्थिर निवृत्तिः निवृत्ति है ? कटस्थ-_/ कूटस्थ और च और निविभागस्य । विभाग-रहित क्व कहाँ मम मुझको मुक्तिः मुक्ति है ? क्व-कहाँ च-और प्रवृत्तिः प्रवृत्ति है ? क्व-कहाँ वा अथवा बन्धनम्बन्ध है ?
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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