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________________ बीसवाँ प्रकरण । की जाती है, सो मेरे में विक्षेप तो तीनों कालों में है नहीं, तब एकाग्रता कौन करे और निबंधिता अर्थात मूढ़ता भी मेरे में नहीं है, क्योंकि ज्ञान-स्वरूप आत्मा में मूढ़ता तीनों कालों में नहीं है, और हर्ष भी मेरे में नहीं है, और न विषाद है । क्योंकि हर्ष और विषाद दोनों अन्तःकरण के धर्म हैं, वह अन्तःकरण क्रिया वाला है। आत्मा क्रिया-रहित है । उसमें हर्ष और विषाद कहाँ है ।। ९ ।। मूलम्। क्व चैव व्यवहारो वा क्व च सा परमार्थता । क्व सुखं क्व च वा दुखं निविमर्शस्य मे सदा ॥ १० ॥ पदच्छेदः । क्व, च, एव, व्यवहारः, वा, क्व, च, सा, परमार्थता, क्व, सुखम्, क्व, च, वा, दुःखम्, निविमर्शस्य, मे, सदा ॥ शब्दार्थ।। अन्वयः। शब्दार्थ। सदा सर्वदा सा-वह निर्विमर्शस्य-निर्मल-रूप परमार्थता-परमार्थता है ? मे मुझको वा अथवा क्व-कहाँ क्व-कहाँ एषः यह सुखम्-सुख है ? व्यवहारः व्यवहार है ? च और च-और क्व-कहाँ क्व-कहाँ दुःखम् दुःख है ॥ भावार्थ । सर्वदा जो निविशेष्य अर्थात् वृत्ति-ज्ञान से शून्य जो मैं अन्वयः।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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