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________________ अठारहवाँ प्रकरण | ३६३ बराबर हैं । आत्म-ज्ञान के बल से उसके हृदय की ग्रन्थि टूट गई है, रज-तम-रूप मल उसके दूर हो गये हैं ॥ ८८ ॥ मूलम् । सर्वत्रानवधानस्य न किञ्चिद्वासना हृदि । मुक्तात्मनो वितृप्तस्य तुलना केन जायते ॥ ८९ ॥ पदच्छेदः । सर्वत्र, अनवधानस्य, न किञ्चित्, वासना, हृदि, मुक्तात्मनः, वितृप्तस्य, तुलना, केन, जायते ॥ अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । सर्वत्र=सब विषयों में अनवधानस्य = आसक्ति - रहित हृदि हृदय में किञ्चित् = कुछ भी वासना-वासना न=नहीं है ईदृशस्य = ऐसे तृप्तस्य = तृप्त हुए मुक्तात्मनः ज्ञानी की शब्दार्थ | तुलना = बराबरी केन = किसके साथ जायते = की जा सकती है । भावार्थ | जिस विद्वान् को किसी विषय में चित्त की रुचि नहीं है, और जिसके हृदय में किंचित् भी वासना नहीं है, वही अध्यास से रहित ज्ञानी है । उसकी तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती है, केवल ज्ञानी के साथ ही की जाती ॥ ८९ ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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