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________________ अठारहवाँ प्रकरण । ३५१ अन्वयः। मूलम् । मन्दः श्रुत्वापि तद्वस्तु न जहाति विमूढताम् । निर्विकल्पो बहिर्यत्नादविषयलालसः ॥ ७६ ॥ पदच्छेदः । मन्दः, श्रुत्वा, अपि, तत्, वस्तु, न, जहाति, विमूढताम्, निर्विकल्पः बहिः, यत्नात्, अन्तविषयलालसः ।। __ शब्दार्थ । | अन्वयः। शब्दार्थ। मन्दः मूर्ख परन्तु-परन्तु तत्-उस बहिः वाह्य वस्तु-आत्मा को यत्नात व्यापार से श्रुत्वा-सुन करके निर्विकल्पः-संकल्प-रहित हुआ अपि भी (भीतर याने मन अन्तविषयक विमूढताम्-मूढ़ता को 13 में विपय का न जहाति=नहीं त्याग करता है लालसावाला __ भवति होता है । भावार्थ । मूर्ख आत्मा का श्रवण करके भी अपनी मुर्खता का त्याग नहीं करता है। मलिन चित्तवाले को आत्मा के श्रवण करने से भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है । मूर्ख बाह्य व्यापार से रहित होता हुआ भी मन में विषयों को धारण किया करता है ।। ७६ ॥ मूलम् । ज्ञानाद्गलितकर्मा यो लोकदृष्ट्यापि कर्मकृत । नाप्नोत्यवसरं कर्तुं वक्तुमेव न किञ्चन ॥ ७७ ॥ लालसः
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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