SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलहवाँ प्रकरण । २४३ काम-- ) धर्म, अर्थ, काम पदच्छेदः । इदम्, कृतम्, इदम्, न, इति, द्वन्द्वः, मुक्तम्, यदा, मनः, धर्मार्थकाममोक्षेषु, निरपेक्षम्, तदा, भवेत् ।। अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः । शब्दार्थ । इदम्य ह मुक्तम्-मुक्त हो कृतम्-किया गया है तदातब इदम्_[ यह नहीं किया सावह न कृतम् । गया है धर्मार्थइति-से द्वन्द्वः द्वन्द्व से ) और मोक्ष विषे मोक्षेषु र यदा मनः-जब मन निरपेक्षम्-इच्छा-रहित भवेत् होता है । भावार्थ । सम्पूर्ण तृष्णा के नाश होने पर शीतोष्णादि-जन्य सुखदुःख भी पुरुष को नहीं सता सकते हैं, इसी वार्ता को अब कहते हैं इस काम को मैंने कर लिया है, और इस काम को मैंने नहीं किया है, इस तरह के द्वन्द्वों से जब पुरुष का मन शून्य हो जाता है, तब वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की इच्छा नहीं करता है। ऐसा जो सम्पूर्ण द्वन्द्वों से और सब इच्छाओं से रहित पुरुष है, वही जीवन्मुक्ति के सुख को प्राप्त होता है ।। ५॥ विरक्तो विषयद्वेष्टा रागी विषयलोलुपः । ग्रहमोक्षविहीनस्तु न विरक्तो न रागवान् ॥ ६ ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy