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________________ २०६ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० "घटमानय" अर्थात् घट को लाओ। अब यहाँ पर 'घट'-पद की शक्ति कम्बुग्रीवादिवाली व्यक्ति में है, अर्थात् घड़े में है और लानेवाले को भी उसका ज्ञान है कि घड़े के लाने का दूसरा पुरुष कहता है। वह 'घटमानय' शब्द को सुनकर तुरन्त घड़े को उठा लाता है यहाँ पर तो शक्ति-वृत्ति करके पद के अर्थ का बोध होता है। और जहां पर शक्ति-वृत्ति करके बोध नहीं होता है, वहाँ पर लक्षणावृत्ति करके पद के अर्थ का बोध होता है, सो दिखाते हैं । .. शक्यसम्बन्धो हि लक्षणा । शक्ति के आश्रय का नाम शक्य है, अर्थात् पद जिस अर्थ को बोधन करे, उस अर्थ का नाम शक्य है। दृष्टान्त । किसी ने एक गुवाल से पूछा, तेरा मकान कहाँ है। उसने कहा-गंगायां घोषः । अर्थात् मेरा मकान गंगा में है । अब यहाँ पर शक्तिवृत्ति करके तो अर्थ नहीं बनता है, क्योंकि 'गंगा' पद की शक्ति प्रवाह में है, अर्थात् 'गंगा' पद का अर्थ जल का प्रवाह है । उस प्रवाह में मकान का होना असंभव है, इस वास्ते यहाँ पर जो लक्षणा करके अर्थ का बोध होता है, उसको दिखाते हैं-'गंगा' पद का शक्य प्रवाह है, उसका सम्बन्ध तीर के साथ है, इस वास्ते गंगा के तीर पर इसका ग्राम है-'गंगायां घोषः' इस पद से ऐसा बोध होता है । और तात्पर्यानुपपत्ति लक्षणा में बीज है। जिस
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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