SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदहवाँ प्रकरण। अन्वयः। मूलम् । प्रकृत्या शून्यचित्तो यः प्रमादाभावभावनः । निद्रितो बोधित इव क्षीणसंसरणो हि सः ॥१॥ पदच्छेदः । प्रकृत्या, शून्यचित्तः, यः, प्रमादात्, भावभावनः, निद्रितः, बोधितः, इव, क्षीणसंसरण, हि, सः ।।। शब्दार्थ । । अन्वयः। शब्दार्थ। यः जो पुरुष च-और प्रकृत्या स्वभाव से निद्रितः सोता हुआ शून्यचित्तः शून्य चित्त वाला है __जागते हुए के चपर प्रमादात्-प्रमाद से स-वह पुरुष से रहित । करनेवाला है । भावार्थ । इस प्रकरण में जनकजी अपने शान्तिचतुष्टय को कहते हैं। जो पुरुष स्वभाव से विषयों में शून्य चित्तवाला है अर्थात् अपने स्वभाव से चित्त के धर्म जो विषयों में राग बोधितःइव- 1 तुल्य है ऐसा विषयों का सेवन । क्षीणसंसरणः- 1 है ॥ भावभावनः
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy