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________________ ग्यारहवाँ प्रकरण । १७९ अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः। शब्दार्थ । आब्रह्मस्तम्ब-_ ब्रह्मा से लेकर च-और पर्यन्तम् । तृणपर्यत शान्तः शान्त-रूप अहम् एव-मै ही हूँ च-और इति-इस प्रकार प्राप्ताप्राप्त-_ / लाभालाभ-रहित निश्चयी निश्चय करनेवाला । विनिर्वृतः । पुरुष । निर्विकल्पः संकल्प-रहित +सुखीभवति-सुखी होता है । शुचि-शुद्ध भावार्थ । जीवन्मुक्तों के और लक्षणों को दिखलाते हैं ब्रह्मा से लेकर स्तंबर्यंत संपूर्ण जगत् मेरा ही रूप है, अर्थात् मैं ही सर्व-रूप हूँ, ऐसा निश्चय करनेवाला जो पुरुष है, वही निर्विकल्प समाधिवाला जीवन्मुक्त है, वही विषयरूपी मल के सम्बन्ध से भी रहित है, वही शान्त चित्तवाला है, और वही प्राप्ताप्राप्त विषयों में इच्छा से रहित है, वही परम संतोषवाला है, वही अपने आत्मानंद करके ही पूर्ण है ॥ ७॥ मूलम् । नानाश्चर्यमिदं विश्वं न किञ्चिदिति निश्चयी। निर्वासनः स्फूतिमात्रो न किञ्चिदिव शाम्यति ॥ ८ ॥ पदच्छेदः। नानाश्चर्यम्, इदम्, विश्वम्, न, किञ्चित्, इति, निश्चयी निर्वासनः, स्फूतिमात्रः, न, किञ्चित्, इव, शाम्यति ।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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