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________________ ग्यारहवाँ प्रकरण । १७१ पर वर्षा हो, तब जाकर बीजों से आगे फल उत्पन्न होते हैं । वर्षा सब खेतों में एकसाँ बराबर होती है, पर जैसा - जैसा जिस खेत में होता है वैसा-वैसा उसमें फल उत्पन्न होता है, न केवल खेत फल को उत्पन्न कर सकता है, न केवल बीज ही फल को उत्पन्न कर सकता है । खेत, बीज और वर्षा तीनों मिल करके ही फल को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दान्ति में बादल स्थानापन्न ईश्वर हैं, खेत स्थानापन्न जीवों के अन्तःकरण हैं, बीज स्थानापन्न जीवों के संचितकर्म हैं, ईश्वर की सत्ता रूपी वर्षा सर्वत्र तुल्य है, क्योंकि ईश्वर चेतन सर्वत्र तुल्य है, परन्तु जैसे-जैसे जिसके कर्म-रूपी बीज अन्तःकरण - रूपी खेत में स्थित हैं, वैसे-वैसे उसको फल होते हैं । ईश्वर स्वतंत्र अर्थात् कर्मों के विना फल का प्रदाता नहीं है । यदि ऐसा हो, तो उसमें विषम दोष आवे, इसी वास्ते ईश्वर न्यायकारी है । प्रश्न- यदि ईश्वर न्यायकारी माना जावे, तब दयालुता आदिक गुण उसमें नहीं रहेंगे । उत्तर- दयालुता आदिक गुण यदि माने जावेंगे, तब न्यायकारिता नहीं रहती है, क्योंकि दोनों परस्पर विरोधी हैं । जो राजा न्यायकारी होता है, वह दयालु नहीं होता है । यदि दयालुता करेगा, तब किसी हननकर्ता पुरुष को हनन करने की आज्ञा नहीं देगा और यदि देगा, तब वह रोने-चिल्लाने लगेगा, क्योकि प्राण तो सबके प्यारे हैं । उसके दुःख को देखकर राजा को उस पर दया होगी और दया के वश होकर राजा उसको छोड़ देगा, तब उसकी
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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