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________________ अन्वयः । कति = कितने जन्मानि =जन्मों तक दशवाँ प्रकरण | शब्दार्थ | कायेन शरीर करके मनसा=मन करके गिरावाणी करके दुःखम् = दुःख देनेवाला आयासदम्={ परिश्रम करनेवाला अन्वयः । कर्म्म=कम्म :{ + इति = ऐसा न कृतम् = क्या नहीं किया गया तत् = वह कर्म अद्यापि अब तो १६३ शब्दार्थ | आयासदम् = 1 जावे ॥ उपराम किया भावार्थ 1 अष्टावक्रजी तृष्णा के उपशम को पूर्व कह करके अब क्रिया के उपशम को कहते हैं हे जनक ! शरीर, मन और इन्द्रियों को परिश्रम देनेवाले कर्मों को तुम अनेक जन्मों तक करते आए हो, और उन कर्मों के फल जन्म-मरण-रूपी चक्र में भ्रमण करते चले आए हो । अब दिन प्रति दिन अनेक दुःख उठाते आए, पर कुछ सुख न मिला, अतएव तुम कर्मों से उपरामता को प्राप्त हो । क्योंकि पुरुष उपरामता होने के, विना जीवन्मुक्ति के सुख को नहीं प्राप्त होता ॥ ८ ॥ इति श्रीअष्टावक्रगीतायां दशमं प्रकरणं समाप्तम् ।। १० ।।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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