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________________ पहला प्रकरण । हैं । और पाँचों तत्त्वों का समुदाय-रूप इन्द्रियों का विषय जो यह स्थूल शरीर है, वह भी तुम नहीं हो, क्योंकि शरीर क्षणक्षण में परिणाम को प्राप्त होता जाता है। जो वाल-अवस्था का शरीर होता है, वह कुमार अवस्था में नहीं रहता है । कुमार अवस्थावाला शरीर युवा अवस्था में नहीं रहता । युवा अवस्थावाला शरीर वृद्ध अवस्था में नहीं रहता। और आत्मा, सब अबस्थाओं में एक ही, ज्यों का त्यों रहता है, इसी वास्ते यूवा और वद्धावस्था में प्रत्यभिज्ञाज्ञान भी होता है। अर्थात् पुरुष कहता है कि मैंने बाल्यावस्था में माता और पिता का अनुभव किया। कुमारावस्था में खेलता रहा यूवा अवस्था में स्त्री के साथ शयन किया। अब देखिये-अवस्थाएँ सब बदली जाती हैं, पर अवस्था का अनुभव करनेवाला आत्मा नहीं बदलता है, किंतु एकरस ज्यों का त्यों ही रहता है । यदि अवस्था के साथ आत्मा भी बदलता जाता, तब प्रत्यभिज्ञाज्ञान कदापि न होता। क्योंकि ऐसा नियम है कि जो अनुभव का कर्ता होता है, वही स्मृति और प्रत्यभिज्ञा का भी कर्ता होता है। दूसरे के देखे हुए पदार्थों का स्मरण दूसरे को नहीं होता है। इसी से सिद्ध होता है कि आत्मा देहादिकों से भिन्न है, और देहादिकों का साक्षी भी है। जो देहादिकों से भिन्न है, और देहादिकों का साक्षी भी है, हे राजन् ! उसी चिद्रप को तुम अपना आत्मा जानो। जैसे घरवाला पुरुष कहता है मेरा घर है, पलँग है और मेरा बिछौना है। और वह पुरुष घर और पलँग आदि से जैसे जुदा है, वैसे पुरुष कहता है-यह मेरा शरीर है, ये मेरे इन्द्रियादिक हैं । जो शरीर और इन्द्रियों का अनुभव
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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