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________________ अन्वयः । नवाँ प्रकरण | शब्दार्थ | नाना प्रकार के मत हैं नाना मतम्= { महर्षीणाम् = महर्षियों के तथा =और योगिनाम् = योगियों के इति= ऐसा अन्वयः । १३९ शब्दार्थ | दृष्ट्वा=देख करके निर्वेदम् = वैराग्य को आपन्नः प्राप्त हुआ कः मानवः = कौन पुरुष न शाम्यति= { नहप्त होता है ॥ को भावार्थ । हे शिष्य ! 'तर्क - शास्त्र' को, और कर्मकाण्ड में निष्ठा को, त्याग करके केवल आत्म-ज्ञान में ही निष्ठा करना चाहिए | क्योंकि तर्क - शास्त्रादिक सब बुद्धि के भ्रम करनेवाले हैं । गौतम आदिकों के जो मत हैं, वे वेद और युक्ति -प्रमाण से विरुद्ध हैं, केवल भ्रम जाल में डालनेवाले हैं । गौतम आदिकों के मत पर चलनेवाले नैयायिक ईश्वर आत्मा और जीव आत्मा, दोनों को जड़ मानते हैं । और ज्ञान, इच्छा आदिकों को आत्मा का गुण मानते हैं । फिर ईश्वरात्मा के गुणों को नित्य मानते हैं । जीवात्मा के गुणों को अनित्य मानते हैं । और सारे जीवात्मा को व्यापक मानते हैं। आत्मा के संयोग को ज्ञान के प्रति कारण मानते हैं । परमाणुओं से जगत् की उत्पत्ति मानते हैं । फिर परमाणुओं को निरवयव मानते हैं । प्रथम तो जीवात्मा और ईश्वरात्मा जड़ नहीं हो सकते हैं, क्योंकि सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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