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________________ नवाँ प्रकरण | १३७ योग्य है, ऐसा जानकर ज्ञानवान् किसी भी पदार्थ की इच्छा नहीं करता है || ३ ॥ मूलम् । arsat कालो वयः किं वा यत्र द्वन्द्वानि नो नृणाम् । तान्युपेक्ष्य यथा प्राप्तवर्त्ती सिद्धिमवाप्नुयात् ॥ ४ ॥ पदच्छेदः । कः, असौ, कालः, वयः, किम्, वा यत्र द्वन्द्वानि, नो, नृणाम्, तानि, उपेक्ष्य, यथा, प्राप्तवर्ती, सिद्धिम्, अवाप्नुयात् ॥ शब्दार्थ | शब्दार्थ | अन्वयः । यत्र=जिसमें नृणाम् = मनुष्यों को द्वन्द्वानि नो= सुख और दुःख न होवे असौ वह क:-कौन कालःकाल है। वा=और किम् = कौन वय: अवस्था है। अन्वयः । अपि तु न कोsपि { अर्थात् कोई नहीं तानि=उन सबको उपेक्ष्य = विस्मरण करके यथा प्राप्तवर्ती= { यथा प्राप्त वस्तुओं में वर्तनेवाला पुरुष सिद्धिम् = सिद्धि अर्थात् मोक्ष को अवाप्नुयात् = प्राप्त होता है || भावार्थ । पुरुषों को सुख दुःखादिक द्वन्द्व किसी खास काल या अवस्था में नहीं व्यापता है, किन्तु सब अवस्थाओं में और सर्व कालों में सुख-दुःखादिक द्वन्द्व देहधारी को बराबर बने रहते हैं । इसी वार्ता को रामजी ने अध्यात्म रामायण में कहा है -
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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