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________________ आठवाँ प्रकरण | मूलम् । यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा । मत्वेति हेलया किञ्चिन्मा गृहाण विमुञ्च मा ॥ ४ ॥ पदच्छेदः । यदा, न, अहम्, तदा, मोक्षः, यदा, अहम्, बन्धनम्, तदा, मत्वा, इति, हेलया, किञ्चित् मा गृहाण, विमुञ्च मा ॥ 1 शब्दार्थ | अन्वयः । यदा=जब अहम् = मैं हूँ तदा-तब बन्धनम् =बन्ध है यदा=जब अहम् न=मैं नहीं हूँ तदा-तब मोक्षः=मोक्ष है शब्दार्थ | अन्वयः । इति= इस प्रकार मत्वा=मान करके हेलया = इच्छा करके मान्मत १२७ गृहाण = ग्रहण कर मा=मत विमुञ्चत्याग कर || भावार्थ । 1 जब तक पुरुष में अहंकार बैठा है - 'मैं ब्राह्मण हूँ', 'मैं ज्ञानी हूँ,' 'मैं त्यागी हूँ, तब तक वह मुक्त कदापि नहीं हो सकता है । ऐसा भी कहा है यावत्स्यात्स्वस्य सम्बन्धोऽहंकारेण दुरात्मना । तावन्न लेशमात्रापि मुक्तिवार्ता विलक्षणा ॥ १ ॥ अर्थात् तब तक इस जीव का सम्बन्ध दुरात्मा अहंकारी
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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