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________________ छठा प्रकरण | १११ प्रश्न- अनंत-स्वरूप आत्मा का देहादिकों में निवास कैसे हो सकता है ? बड़ी वस्तु छोटी वस्तु के भीतर नहीं आ सकती है ? उत्तर - जैसे घटमठादिक आकाश के निवास के स्थान हैं, और भेदक भी हैं, वैसे ही देहादिक भी अनंत-स्वरूप आत्मा के निवास का स्थान है, और भेदक भी है । वास्तव में तो यह जगत् मिथ्या माया का कार्य होने से मिथ्या है । इस प्रकार वेदान्त करके सिद्ध जो ज्ञान है, वही अनुभवरूप होकर जगत् के मिथ्यात्व में प्रमाण है, इस वास्ते लयचितनादिक भी जगत् के नहीं बन सकते हैं ॥ १ ॥ मूलम् । महोदधिरिवाहं स प्रपञ्चो वीचिसन्निभः । इति ज्ञानं तथैतस्य त्यागो न ग्रहो लयः ॥ २ ॥ पदच्छेदः । महोदधिः, इव, अहम्, सः प्रपञ्चः, वीचिसन्निभः, इति, ज्ञानम्, तथा, एतस्य, न, त्यागः, न, ग्रहः, लयः ॥ शब्दार्थ | शब्दार्थ | अन्वयः । अहम्=मैं महोदधिः इव समुद्र सदृश हूँ सः यह प्रपञ्चः संसार वीचिसन्निभः-तरंगों के तुल्य है। तथा इस कारण नन्न अन्वयः । एतस्यत्यगाः = इसका त्याग है च = और न=न ग्रहः लयः = ग्रहण और लय है - यह ज्ञान है अर्थात् इति ज्ञानम् = 2 इस प्रकार के विचार को ज्ञान कहते हैं ||
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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