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________________ संस्कृसटीका-भाषाटीकासहिता। (७९) - करी जाय तो वहभी शब्दरहित है अर्थात् प्रपञ्चमेंभी सत् असत् नाना प्रकारके पदार्थ मालूम होय हैं इसकारण प्रपंचकामी वर्णन नहीं होसके है। इसकोभी मौन कहे है यह मौन साधुपुरुषोंको स्वभावसिद्ध होय है ब्रह्मवादी लोग बालकके , मौनको मौन कहें हैं ॥ १०८ ॥ १०९॥ . आदावंतेचमध्ये च जनोयस्मिन्न विद्यते॥ येनेदं सततं व्याप्तं सदेशोविजनास्मृतः॥११०॥ सं. टी. इदानी देशलक्षयति आदाविति अत्र जन। स्य त्रैकालिकाभाव आनुभविकः स्वप्रतीत्याज्ञेयः नतु लौकिकशास्त्रीयप्रतीतिभ्यां विरोधादिति भावः स्पष्टमन्यत् ॥ ११०.॥ भा. टी. जहाँ आदि, अन्त, मध्यये कहींभी जन न होय जिस करके निरन्तर संसार व्याप्त रहै उस देशका नाम निर्जन देश है सदा जनशून्य स्थानही योगसाधनके अर्थ उपयुक्त • - होय है ॥ ११०॥ कलनात्सर्वभूतानां ब्रह्मादीनां निमे. षतः ॥ कालशब्देन निर्दिष्टो ह्यखंडा नंदअद्रयः॥१११॥ सं. टी. अथ कालं लक्षयति कलनादिति निमेष
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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