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________________ ( ७० ) अपरोक्षानुभूतिः । भा.टी. देहभी प्रपञ्चस्वरूप है और प्रपञ्चके अध्यस्त होने से पूर्व जन्म के कर्म्म कहाँ यदि कहो साक्षात् श्रुति कम्र्म्मभोगको कहै है तहां ऐसा जानना कि जिनको तत्त्वज्ञान नहीं हुआ है अज्ञानी हैं उनके बोध न कराने के वास्ते श्रुति कहे है ॥ ९७ ॥ - श्रीयंतेचास्यकर्माणि तस्मिन्दृष्टे परा वरे ॥ बहुत्वं तन्निषेधार्थं श्रुत्यागीतंचयत्स्फुटम् ॥ ९८ ॥ सं. टी. किंतर्हि ज्ञानिबोधार्थं वक्ति श्रुतिरितिचेदुच्यते क्षीयतइति "भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यते सर्वसंशयाः ॥ क्षीयते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे परावरे " इतिश्रुत्या कर्मणीति बहुत्वं यत् स्फुटं गीतं तत्तन्निषेधार्थ प्रारब्धाभावप्रतिपादनार्थं अन्यथा संचितक्रियमाणा -- पेक्षया कर्मणीति द्वित्वं गेयं तथा न गतिमतो ब्रह्मात्मसाक्षात्कारात् चिज्जडग्रंथिभेदेन संचितक्रियमाणप्रारब्धाख्यत्रिविधकर्मक्षयांते परमपुरुषार्थं ज्ञानिबोधार्थं श्रुतिर्वक्तीतिभावः ॥ ९८ ॥ . भाटी. जो कर्म्म श्रुतिनें प्रतिपादन किया है वह सम्पूर्ण परात्पर परमात्मा के दर्शन करनेसे अर्थात तत्त्वज्ञान होनेसे नष्ट होजाता है सञ्चित, क्रियमाण, प्रारब्ध, तीन प्रकारका कर्म श्रुतियोंमें कहा गया है सो कर्मका अभाव प्रतिपादन करनेके अर्थ बहुत्व दरसाया ॥ ९८ ॥
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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