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________________ . (३४ . अपगैंक्षाऽनुभूतिः । 'सर्वपुरुषएवेति सूक्ते पुरुषसंज्ञिते॥अ.. प्युच्यते यतः श्रुत्या कथं० ॥३५॥ सं. टी. नकेवलमनयैकया श्रुत्या विनिर्णीतं किंत्व न्ययापीत्याह सर्वमिति । यतो हेतोः श्रुत्या वेदाख्यपरदेवतया 'पुरुषएवेदंसर्वम्' इति पुरुषसंज्ञिते सूक्तेप्युच्यते पुरुषलक्षणमिति पूर्वश्लोकादध्याहारः अतः कथं स्यादितिपूर्ववत् ॥ ३५ ॥ __ भा. टी. "पुरुष - एवेदं सर्व यदभूतं यच्च भाव्यम्" इति श्रुतिः।जो कुछ दृष्टिगोचर होयहै सो सब आत्मस्वरूपहै और जो कुछ हुआ और जो कुछ होयगा सर्व आत्मस्वरूप है। इस श्रुतिसे कहा हुआ परमात्मा देहमय किस प्रकार होस है ३५ असंगः पुरुषः प्रोक्तो बृहदारण्यके ऽपिच॥अनंतमलसंश्लिष्टःकथं०॥३६॥ ___सं.टी.अपरयापि श्रुत्यैवमेव निर्णीतमित्याह असंगइति । "असंगो ह्ययं पुरुषः" इति श्रुत्या बृहदारण्यके वाजसनेयोपनिषदि पुरुषः असंगः प्रोक्तः देहकस्त्वनंतमलसंश्लिष्टः कथं पुमान्स्यादिति ॥३६॥ __ भा. टी, "असंयोगोयंपुरुषः" आत्मा सङ्गहीन है यह बृह दारण्यक उपनिषद्की श्रुति है इस श्रृंतिसेभी आत्मा असंग सिद्ध होताहै और देह नानाप्रकारके मलोंकरकै लिपटा हुआ फिर किसप्रकार आत्मा देहमय होसकै है ॥ ३६॥
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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