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________________ (२२) अपरोक्षानुभूतिः। भा. टी. आत्मा नित्यहै अर्थात् आदि मध्य अन्त करके रहितहै, इसी कारण सदूप है अर्थात् सदा एकरस रहे है और देह अनित्य है अर्थात उत्पन्नहोय है, बालक होयहै, युवा होय है, वृद्धहोयहै, रोगी होयहै, सुखदुःख करके ग्रसित रहै है और असत् है अर्थात् नाशवान् है तौभी संसारी पुरुष देह और आत्माकी समता कर व्यवहारकरे हैं इससे अधिक और क्या अज्ञान होगा ॥ २३ ॥ आत्मनस्तत्प्रकाशत्वं यत्पदार्थावभासनम् ॥ नारन्यादिदीप्तिवद्दीप्तिर्भवत्यान्ध्यं यतो निशि ॥२२॥ सं. टी. नन्वात्मनः प्रकाशत्वं किं नामेत्यत आह आत्मनइति आत्मनस्तत्र प्रकाशत्वं बोद्धव्यं किंतदित्यतआह यदिति यत्पदार्थावभासनं घटपटादिवस्तुविषयप्रकाश इदंतया निर्दिश्यमानविषयदर्शन मिति या वत् । त_ग्न्यादिप्रकाशवद्विकारित्वं स्यादित्यतआइ नारन्यादिदीतिवद्दीप्तिरिति इयमात्मदीप्तिरग्न्यादिदीप्तिवन कदाचिदुत्पत्तिंविनाशादिविकारवतीत्यर्थः तत्र हेतुमाह भवतीति भवत्यांध्यं यतो निशि यताकारणानिशि रात्रावग्न्यादिप्रकाश एकस्मिन्देशेसत्यपितदन्य अलोकस्यांध्यं रूपग्रहाशमत्वं भवति नैतादृश्यात्मदीतिरकत्र विद्यमाना चैकनाऽविद्यमाना परिच्छिन्ना चास्ति
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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