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________________ .(१०) अपरोक्षानुभूतिः। 'उपरति' है । और संपूर्ण प्रकारके दुःखोंको सह लेना सो 'तितिक्षा' कहावे है ॥ ७ ॥ (श्रद्धा और समाधानस्वरूप) निगमाचार्यवाक्येष्ठ भक्तिः श्रन्हति विश्रुता॥ चित्तैकाथ्यन्तु सल्लक्ष्ये समाधानमिति स्मृतम् ॥ ८॥ सं. टी. अपिच निगमेति निगमाचार्यवाक्येषु वेद गुरुवचनेषु यद्वोपनिषद्व्याख्यात्रुपदेशेषु भक्तिभंजनं विश्वास इत्यर्थः सा श्रद्धति विश्रुता वेदांतप्रसिद्धा तु पुनः सल्लक्ष्ये “ सदेव सोम्येदमग्रआसीत्" इत्यादिश्रुतिलक्ष्ये प्रत्यगभिन्ने ब्रह्माणि चित्तैकाथ्यं तदेकजिज्ञासेत्यर्थः तत्समाधानमिति स्मृतम् ॥८॥ भा. टी. वेद शास्त्र पुराण और गुरुके वाक्योंमें जो भक्ति करनाहै सो 'श्रद्धा' कहावे है और शब्दादि विषयोंसें अन्तः करणको हटाकर मोक्षोपकारक श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा निरन्तर नित्य अनित्यके विचारको समाधान कहें हैं॥८॥ (मुमुक्षुता स्वरूप) संसारबन्धनिर्मुक्तिः कथं मे स्यात्क'दा विधे ॥ इति या सुदृढा बुद्धिर्वक्त व्या सा मुमुक्षुता ॥९॥ ।
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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