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________________ (९६) अपरोक्षानुभूतिः । उत्पत्ति नहीं होय इससे व्यतिरेकानुमानसे कारणका निश्चय करै ( यथाहि कार्य सकारणकम् ) ऐसे अनुमानमें ( यदि कारणं न स्यात् तर्हि कार्य्यमपि नस्यात् कार्यं दृश्यते अतः कारणमप्यनुमीयते ) यदि कारण नहीं होयतौ कार्यभी नहींहोय कार्य है इस कारण कारणका अनुमान किया जाय है । इस प्रकार व्यतिरेकानुमान होय है ॥ १३८॥ कार्ये हि कारणं पश्येत्पश्चात्काय विसजयेत् ॥ कारणत्वंततोगच्छेदवशिष्टं भवेन्मुनिः॥१३९॥ सं. टी. अथवैवं विचारयेदित्याह कार्येति आदौ कार्य कारणमेव विचारयेत् पश्चात्तत्कार्य विसर्जयेत् नानुसंदध्यात कार्यवर्जने सति कारणत्वं स्वत एवं गच्छेत् एवं कार्यकारणवजनेऽवशिष्टं सच्चिन्मानं मुनिमननशीलः स्वयमेव भवेदिति ॥ १३९॥ ___ भा. टी. पहले कार्यसे कारणका निश्चय करै पीछे कार्यका त्याग कर देय, कार्यका त्याग करनेपर कारण . आपही अवशिष्ट रह जाय है इसी प्रकार कार्यके वर्जित होनेसे मुनिगण स्वयं चिन्मय स्वरूप होजाय हैं ॥ १३९ ॥ भावितं तीव्रवेगेन यदस्तु निश्चयात्मना ॥पुमांस्तद्विभवेच्छीघ्रं ज्ञेयंभ्रमरकीटवत्॥१४०॥
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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