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________________ तीमा सघळु शांत, आनंदथी अने सूक्ष्म आशीर्वादोथी भरपुर छे." आ कारणथोज आ बाबतना जाणकार महात्माओ, पवित्रपुरुषो अने जगदुद्धारको सदा शांत स्वभाव राखे छे. तेओ जाणे .छे के आखरे सर्छ ठीक अने सारंज थशे. तेथी तेवा जानने लीधे सेओ शांति साये आनंद पण मेळवी शके छे. आकारणथी ओने महात्मा पुरुपोने पगले चालq होय तेओए चिंता शोक अथवा उग वगरनी स्थितिमा रहेवानी देव पाडवी जोइए. ४. ज्ञान-मनु यने जे भुवन उपर काम करवातुं छे, ते भुवनने लगतुं ज्ञान तेणे मेळव, जोइए. आ बाबतन ज्ञान जेसा मनु-यने वधारे होय तेम ते वधारे उपयोगी बनी शके. आ कामने माडे लायक थवाने गुप्तशान अने अध्यात्मने लगतां पुस्तकोमा जे कांइ माहेतीको प्रकट थयेली छे ते सपळ संभाळथी धांजी, विचारी मनन करघु जोइए. लेओने वधारे उपयोगी काम करवानु होय, तेओने वारे घडीए पूछो तेजोनो अमूल्य वखत लेवो जोइए नहि. पण अपार अगाउ पुस्तकोमा जे काइ प्रकाट थयु होय ते जाते वांधीने अभ्यास करवो जोइए. ले कोइ अभ्यासी आवां पुस्तको वांची, तेने लगतुं ज्ञान मेळवया उधम करतो नथी, तेणे कदापि सूक्ष्मभुवनमा परोपकारने लगता /कामो करवानी आशा राखत्री नहि. ५. स-सौथी छेलो पण सौथी वधारे अगत्यनो गुण प्रेमनो के. आ HTT) -- जोइए के आ प्रेम ते प.क्त शब्दोमा * बलातो, काइक क्षणिक जुरूसो उभु देवानी जेनामा ताकात नथी, प्रापि कायना रुपाना बदलाती Scanned by CamScanner
SR No.034084
Book TitleSwarshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1910
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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