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________________ Scanned by CamScanner प्रस्ताविक दुहा संग्रह ॥२०॥ मुकी वस्तु जडे नहि, चेटक भुली जाय । लरूतां खोटु लखी गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥५४६॥ मुरता नहि घर आयो सऊन गयो, घोडो दोडत जाय । गाढ बंध ढीला पडया, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४७॥ ताणे नहि मेळ भला शोभे नहि, गामज खावा धाय । हाट श्रेणी शोभे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४८॥ वसति नहि दान वात जाणे नहि, धर्म द्वार नहि जाय । तप कर्यो निष्फळ गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४९ ॥ भाव नहि सज्जन लागे दुरजना, मातपिता न सोहाय । घर त्रिया रूठी फरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५० ॥ हेत नहि दीवे पतंग झपी मरे, परणी परदेश जाय । अणघटता घणा करे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५१ ॥ लोभे करीने छते पलंगे भोंय सुवे, घडो छलक्यो जाय । छते डगले टाढये मरे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५२ ॥ भो नहि मोटुं शहेर वसे नहि, काया क्षीण ज थाय । अडोदल पाछो हठे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५३ ॥ राजा नहि घोडो तो दुर्बल थयो, नोकर स्ठो जाय । विक्षुक तो मुंडो वदे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५४ ॥ पाम्यो नहि निज त्रिया अडची फरे, परवज कोरा जाय । मोटा सुत वहाणे फरे, कहो चेला वयं थाथ ॥ ५५५ ॥ संपत्ति नहि खेतर चोरे भेलीयो, गामे चोरी बहु थाय । ताकी दाण आवे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५६ ॥ चोकी नहि हाथ चूडी शोभे नहि, अमल चडा न थाय । आप्यो केस खपे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५७ ॥ रंग नहि आंबो तो खाटो लगे, गुमडे पीडा थाय । भर्यो घडो फाटी गयो, कहो चेला शुं थाय ॥ ५५८ ॥ पाक्यो नहि गाये पण शोभे नहि, कूवे नीर न थाय । नवमो ग्रह शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५९ ॥ सीर नहि जाडे फल नवि नीपजे, त्रिया गर्भ नवि थाय । वाडी भली शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६० ॥ फूल नहि ॥२०॥
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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