SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Scanned by CamScanner भी पस्ताविक संग्रह नाचे कुदे तोरे तान, दुनिया उसका राखे मान । शील संतोष यूपकी परे, दुनिया उसकी मश्करी करे ।। १५८॥ नाइ पोइने पाटले पेसे, उभा ताणे टीला । पारके घेर जमयान होय तो, पोतीया मुकेटीला ॥१५९ ।। निर्धनीयो धन इकहो घणु, पुन्य न की) पूरयतणु । सांज पडे संभाळे मेळ, सांधे नय ने तुटे तेर ॥ १६०॥ निंदा परनी जे करे, कूटा देवे आल । मर्म प्रकाशे परतणा, तेथी भलो चमन ।। १६१ ॥ निंदक धोषी दो जणा, पोयतो सब मेल । धोबी पेसा लेत है, निंदक ठेलम ठेल ।। १६२॥ निंदा हमारी जो करे, मित्र हमारा होय । साघु लेके गांठ का, मेल हमारा पोय ॥ १६३ ।। निर्लज्ज नर लाजे नहि, करोने कोटी उपाय । नाक कपायुतो कहे, अंग ओछो भार ॥ १६४ ॥ नीनु जोइने चालता, प्रण गुण मोटा होय । काटा टळे, दया पळे, पग पण नहि खराय ॥ १६५ ॥ नीची द्रष्टि नपि करे, मोटा जे कहेवाय । सिंह लोधणो सो करे, तोपण तृण नब खाय ।। १६६ ।। नेह विणडे मन गये, शीकी जे ताणाताण । भाग्यो मोती जो जुड़े, तो मन भावे ठगम ॥ १६७ ॥ नाना महाराजने मोटु टील, पापडीढीली ने मोई पील । टुकी पोतडीने वळसी पारा,पएपाणीये ग्रामणवाग॥१६८॥ नाजुक नार ने घरेणा भारी, काली चेली ने पाले चमकाळी पापडीयो मोटी ने शेठमी जान, एएपाणी वाणीयावाग। हाथमाहोको ने करे खोखारा, मण्डी बांकी ने बाळ रूपाळा | आंगणेघोडीने पगातोग, ए एपाणीये रजपूतवाग॥१७॥ भंस घणी ने पळद बरेरा, लुगा जाग ने घासना भारा । पालक रमे पारंपराग, एएपाणीये कणवीवाडा॥१७॥ परिव रेडक भला, जल विण क्षण न रहत । मिय विण उत्तम नारीने, क्षण एक बरसात ॥ १७२ ॥ ॥ ७ ॥
SR No.034081
Book TitlePrastavik Duha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherDevchand Dalichand
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy