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________________ ( ८४ ) खेचताणमां न पडवुं. योग्य जीव होय ने कदापि क्रिया तेना गच्छना आचार प्रमाणे करता होय, पण बीजा आप आपणा गच्छनी रीते प्रमाण करता होय, तेनी निंदा करता न होय तो श्रापणे पण तेनी साथे मध्यस्थ रहेवुं, पण खेंचाताण करवी नहि. खेंचाताणथी घणा विकल्पमां पडी जबुं थाय छे ने धर्म छे ते निर्विकल्पदशामां छे. वास्ते जे जे काम करवुं मां निर्विकल्प दशा थाय एवी क्रिया करवी. सोबत करवी तेमां पण स्वगच्छी होय ने तेनी सोबत करवाथी विकल्प थतो होय ने परगच्छी होय ने तेनी सोबतथी निर्विकल्पदशा थती होय तो तेनी सोबत करवी. हरेक प्रकारे राग द्वेषनी प्रकृति ओछी थाय तेम कर. वादविवाद करवाथी सामाने गुण थाय अथवा जैनशासननो जय थाय एवं होय तो करवो पण फोगट कंठशोष थाय एवो वाद करवो नाह. हरिभद्रसूरि महाराजे ष्टकीमां वो वाद निषेध्यो छे. वास्ते जेमां सामा जीवने अथवा आपणा आत्माने गुण थाय एवं होय ते वाद, चर्चा के धर्मकथा करवी ने आ गुणस्थानवाला एम ज करे. श्रात्मधर्मनो लाभ थाय तेमां ज काल काढे. संसारमा रह्यो छे, पण संसारी सुखने वेठ रूप जाणे छे परंतु तेमां प्रसन्न थतो नथी. जे जे संसारी काम करे छे तेमां भावे छेजे आ कृत्य म्हारे करवा योग्य नथी. पण पूर्वे कर्म बांध्यां छे थी मां हूं बंधाइ रह्यो छु. ए उपाधिथी निकली शकातुं नथी; पण ज्यारे राग द्वेषनी प्रकृतिथी मूकाइ आ संसार जालथी निकलीश ने म्हारा जाणवा देखवाना स्वभावमां वर्त्तीश ते ज म्हारुं काम छे. हाल पण जे जे शुभ - शुभ कर्मना उदय थाय तेमां म्हारे लीन थवं ए म्हारो स्वभाव नथी. हुं ज्यां सुधी संसारमा रह्यो छें. त्यां सुधी म्हारे म्हारा स्वभावमां रही उदय आवेली क्रिया करवी छे. एमां कंइ म्हारे म्हारुं मानवानुं नथी. आवो विचार पण करवो पडतो नथी. सहजे समकितना प्रभावथी ज पोते लीन थता नथी. पुद्गलनो तमासो जुए छे ने पोते पोताना ज्ञान, दर्शन चारित्रमां ज मन थइ रह्या छे, ए गुणमांज आनंद माने छे. संसारी आ Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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