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________________ ( ७५ ) धेलां कर्म नाश करवानो शं उपाय बताव्यो छे ? उत्तरः-चौद गुणस्थान कह्यां छे. तेमां अनुक्रमे गुण वृद्धि करीने चौ. दमुं गुणस्थान पामीने जीव सिद्धिने पामे छे. ते गुणस्थान नीचे मुजब. मिथ्यात्व गुणस्थानमा जीवो रहेला छे, तेना प्रभावे विपरीत बुद्धि थइ छे. परवस्तु जे पुद्गलिक पदार्थने शरीर, धन, कुटुंबादिकने म्हारुं मानी तेमां लुब्ध थइ रह्यो छे त्यां सुधी तो संसार छे. बीजूं सास्वादन गुणस्थानक ते जीव उपशम समकित पामीने पड़े छे ने मिथ्यात्वे पहोच्या नथी, त्यां सुधी वचमांनो काल छ आवलिका उस्कृष्टो तेटली वार रहे छे. जेम कोइ माणसे खीर खांडगें भोजन कर्यु होय ने पछी वमन करे छे ते वखत पण मुखमां मीठाश लागे छे; तेम समकितथी पडे छे तो पण समकित संबंधिना कंइक सारा अध्यवसाय रहे छे, तेनुं नाम सास्वादन गुण स्थान छे. इहां कोइने शंका थाय जे पहेले बीजे विशुद्ध अध्यवसाये चडे तेनुं स्वरूप जोइने तेने बदले इहां पडता भावनुं बीजं स्थान कडं ते शुं ? ते विषे जाणवू जे ज्ञानी महाराजें ज्ञानमां चडता पडताना अध्यवसायनां स्थानक जोयां, तेमां एक एक थकी चड. ता अध्यवसाय जोया, तेमां बीजी पायरीना अध्यवसाय कोइना चढता जोया नहि, पडताना ज बीजी पायरीना अध्यवसाय थतां जोया, तेथी पडताना अध्यवसायनुं स्वरूप कां. चढता तो पहेला गुण स्थानकना भावथी विशद्ध भावे त्रीजा गुणस्थानना भाव थता जोया. तेथी पहेलेथी त्रीजे गुणस्थानके जाय. त्रीजा गुणस्थान- नाम मिश्रगुणस्थानक छे. ए गुणस्थाने मिथ्यात्वभा. वनो नाश थाय छे, पण समकित योग्य थता नथी. वचमानां अध्यवसाय थाय छे ते मिश्रभाव कहीए. ए गुणस्थाने शुद्ध देव गुरु धर्म उपर द्वेष हतो तेनो नाश थइ जाय छे. वधारे स्वरूप मिश्रमोहनीनो दर्शाव आ. गल करी गया छीए तेथी जाणवू, ए मिश्रमोहनीनो नाश थाय छे त्यारे जीव समकित पामे छे अने चो) गुणस्थान पामे छे. इहां कोइने शंका Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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