SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो पण छोडे नही, केटलाएक एशी वरसना वृद्ध थाय तो पण कुंचीओ छोकराने श्रापता नथी, आभूषण प्रमुख होय ते मरवानो वखत आवे त्यां सुधी अंग उपरथी उतारता नथी, मरणांत रोग आवे तो पण औषधना पैसा खरचे नही, अनेक प्रकारनां दुःख सहन करे, कोइ दश गाल दे, मार मारे तो पण काइ लालच होय तो ते सहन करे छे, केटलाक अनाजना वेपारी अतिशे लोभीआ होय छे तेओ चोमासा सारु माल संघरी राख्यो होय छे तो एवीज भावना भावे छे के दुकाल पडे लो सारं, दुकाल पडवाथी द्रव्यनी वधारे प्राप्ति थाय, दुकालथी दुनीआने केटलु दुःख थशे ? तेनी जरा पण फिकर करे नही, एम करतां सारी वृष्टि थाय तो मनमा अतिशे दुःखी थाय अने दिलगीरीमा रहे. ए अनंतानुबंधी लोभनो स्वभाव किरमजना रंग जेवो छे. किरमजनो रंग गमे तेटलो धुए तो पण जाय नही. बाले तो राख पण किरमजना रंग जेवीज रहे. तेम अनंतानुबंधी लोभ मरतां सुधी छूटे नही. ए अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया अने लोभ चारे नरक गतिना आपनार छे. ए चारे होय त्यां सुधी समकितनी प्राप्ति थाय नही. २ अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया अने लोभना करतां नरम होय छे. सूका तलावमां फाटो पडी होय ते उत्कृष्टि वरस दिवस सुधी रहे छे, पाछो वरसाद श्रा. वे एटले फाटो मली जाय छे. तेम कोइ जीव उपर क्रोध थयो होय, सामा माणसे गमे तेटलुं वगाडयुं होय पण संवत्सरी प्रतिक्रमण करती वखत सर्व जीवने खमावी सर्वने मित्र तुल्य गणे; पण कोइना उपर गुस्सो राखे नही. तेणे कांइ काम करवाने आप्यु होय तो तेना उपर द्वेष बुद्धि न लावतां खुशीथी करी आपे तेनुं नाम अप्रत्याख्यानी क्रोध समजवो. अप्रत्याख्यानी मान दांतना थांभला जेवू होय छे. पथ्थरनो थांभलो तो नमेज नही पण दांतनो थांभलो पाणी प्रमुख उपचार करवाथी नमे छे. तेम अप्रत्याख्यानी मनवालो पुरुष सनुरुना उपदेशथी अथवा Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy