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________________ अज्ञान कहेवाय छे. हवे कोइने शंका थाय के, संसारमा घणा बुद्धिवाला होय छे तेने अज्ञानी केम कहेवाय ? ते विषे जाणवू जे संसारमा बुद्धि वापरवाथी पाछां नवां कर्म बांध्यां अने पातानो आत्मधर्म जेवो छे तेवो जाणीने प्रगट करवानो उद्यम करवो ते उद्यम तो थयो नही अने उलटो आत्माने मलीन करयो त्यारे ए ज्ञान ते अज्ञान ज कहेवाय. हवे जे पुरुष ज्ञानवंत पुरुषनी अने ज्ञान जे शास्त्र तेनी निंदा करे छे, कोइने भणतां अंतराय करे छे, पुस्तक उपर बेसे छे, पुस्तक उपर मस्तक मूके छे, थूक लगाडे छे, पुस्तक आगल छतां आहार-निहार करे छे, ज्ञान भणवानी इच्छा न होवाथी उलटो द्वेष धरे छे. विगेरे ज्ञाननी आशातना करे छे ते पुरुष ज्ञानावरणी कर्म बांधी आत्माने पावरे छे अने जे पुरुष ज्ञानवंत पुरुषनी तथा ज्ञान जे शास्त्र तेनी बहुमान पूर्वक घणा प्रकारे भक्ति करे छे, ज्ञान भणवानो रात्रि-दिवस अभ्यास करे .छे बीजाने भणवामां जोडे छे, शक्ति होय तो पोते धन- खरच करी बीजाने भणावे छे, शास्त्रना भंडार करावे छे, वली जे जे लीपीओ संसारी वि. द्यानी छे ते भणीने पण कोइ माणस हुंशीआर थया होय तो धर्म समजवो सुलभ थाय, म्होटा ओद्धाओ मेलवे अने सुखी थाय तो सुखे धमसाधन करे. वली शासन दीपावे, वास्ते सर्व प्रकारे ज्ञान भणाववामां म्होटो लाभ छ एम समजीने तेमां द्रव्य वापरे छे. एवी रीते ज्ञान आराधन करवाथी कर्मनां आवरण ओछां थाय छे. विशेष प्रकारे तत्व वि. चारणा करवाथी घणां आवरण खपे छे अने आत्मा शुद्ध थाय छे. ए मति श्रतज्ञानना आवरण- तथा ते कर्म खप्यान स्वरूप जाणवं. __ अवधिज्ञानावरणीनी प्रकृति अवधिज्ञानने आवरे छे. जेने अवधिज्ञान थयु होय तेने पोतानी आत्मशक्तिथी रूपी पदार्थनुं ज्ञान थाय छे. तेने चक्ष प्रमुख इंद्रिओनी जरूर पडती नथी. आत्माथी ज जणाय छे. जेने सो कोषनुं ज्ञान थयु होय ते सो कोष उपर जे थतुं होय ते पोताना स्थानके रह्या जाणे छे, गया कालनु पण जाणी शके छे, जेने..लोकाव Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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