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________________ पाछलधी बगडे तेवा प्राणीओने शा माटे बनावे ? वली ईश्वर समदृष्टिवाला होवाथी एकने मनुष्य बनावे, एकने जनावर बनावे, एकने सुखी करे; एकने दुःखी करे एम होय ज नहीं. तेनो विचार तो सर्वने सुखी बनाव. वानो ज होवो जोइए अने ते, तो कांइ नगत्मां देखातुं नथी. तेथी ज. गत्कर्ता ईश्वर मानवो ए वास्ताविक नथी. वली केटलाएक कहे छे के ए तो बधुं ईश्वरनी इच्छावडे ज बने छे, आ कहे, पण असत्य छे. केम के जे जे धर्मवाला मुक्तिने माने छे अने मुक्ति भेलववा उद्यम करे छे तेना शास्त्रमा प्रांते क्रोध, मान, माया, लोभ ए चारथी मूकावं अने समभावमां रहे, एन नाम ज मुक्ति कहेल छे. त्यारे विचारो के बीजाश्रोने तो इच्छाथी मुक्त थवा कहे छे अने पोते श्रा जगत् उपजाववानी इच्छा करे छे ए वात केम संभवे ? जेम हालमां केटलाएक धर्मगुरु नाम धरावनाराश्रो पोते द्रव्य राखे छे, स्त्री भोगवे छे अने बीजा तेना सेवकोने उपदेश करे छे के 'द्रव्य अस्थिर छे, अर्थ अनर्थ- मूल छे, स्त्रीना संगथी अनेक प्रकारनां कर्म बंधाय छे, माटे तमे द्रव्य तथा स्त्री बन्नेनो त्याग करो. एटले तमने घणो लाभ थशे ?' श्रा दृष्टांत प्रमाणे जगत्ना कर्ता ईश्वर पोते तो राग द्वेषथी मुक्त थया नथी अने बीजाने मुक्त थवा कहे छे, माटे एq कथन ईश्वरनु होम ज नहीं. एवी वातो करनारा ई. श्वरना स्वरूपने समजता नथी अने फोगटना ईश्वरने दूषण आपे छे. ई. श्वर तो सर्व प्रकारनी राग द्वेषनी परिणतीनो त्याग करनारा होय छे. कोइ प्रकारनी उपाधि तेमने होती नी; संसारी काइ पण काम तेमने करवं नथी. संसारी काम तो देहधारी प्राणी करे छे. ईश्वर देह रहित थयेला छे. पोताना आत्मस्वभाव वडे सर्व पदार्थोने जाणे देखे छे, पण तेमां प्रणमता नथी. ईश्वग्नुं खलं स्वरूप आ प्रमाणे होवाथी तेश्रो जीवना के पुद्गलना कर्त्ता नथी, जी अने पुद्गल पदार्थ अनादिकालथी स्वभाविकपणे ज छे एम समजवू. ४२ प्रश्नः-आत्माना चेतनगुणने कर्म जड होवाथी शी रीते श्रावी शके ? Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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