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________________ (२१) रस विगेरे सुगंधी वस्तुओथी बनावेलो दशांगधूप करवो. फानसनां दी. पक राखीने दीपपूजा करवी. भगवंतना शरीर उपर सोना रूपाना वरक यथाशक्ति चडाववा अने प्रांगी रचवी अथवा रचाववी. पछी भगवंतना समीप भागे सुंदर उज्वल अक्षतवडे नंदावर्त अथवा स्वस्तिक करवोः तेनां प्रथम त्रण ढगली करतां पहेली ढगलीए ज्ञान प्राप्ति, वीजी ढगलीए दर्शन एटले समकितनी प्राप्ति तथा त्रीजी ढगलीए चारित्रनी प्राप्ति थाय तेवी रीते भावना भावनी. त्यार पछी स्वस्तिक, रचवो. ते वखते चार गतिनो नाश थाय तेवी भावना भाववी. वली त्रण ढगलीनी उपर. अक्षतवडे सिडशिलानो अर्धचंद्र जेबो आकार करवो अने विचारचं जे पा सिद्धशिला उपर म्हारो वास थाओ. एवी रीते अक्षतपूजा करीने पछी सुंदर फल मेवा प्रमुख धरवा. अपक्क, मडेला, खराब वासवालां अथवा अभक्ष फल धरवानो पूाप्रकरणमा निषेध कस्यो छे माटे तेवां फल चडावबां नहीं. पछी नैवेद्य धर. तेमां भक्ष पदार्थ जे जे खाता होइए ते ते जेवा के लाडु, दूधपाक, शाक, दाल, भात, चूरमा प्रमुख अनेक आतनी रसवती प्रभु आगल धरवी. पूर्वोक्त फल, नैवेद्य प्रभु आगल धरी भावना भाववी, जे आ आहार अनेक पाप .. श्रारंभ करी निपज्यो छे अने श्रा श्राहार हुँ खाइश तेथी पण एना आस्वादनथी मने राग द्वेषनी परिणती जागशे, माटे जेटलो आहार प्र. भुने चडावीश ते आहार संबंधी राग द्वेषनी परिणती थवी बंध रहेशे अने वली उपकारीनी भक्ति थशे तेथी परंपराए मुक्तिफलनी प्राप्ति. थशे. श्रावी सुंदर भावना भाववी. ए प्रमाणे द्रव्यपूजा करवी. एथी वधारे द्रव्य होय तो वधारे चडाबवा. त्यार पछी त्रीजी 'निसिहि' कहेवी अने. विचार, जे द्रव्यपूजानें काम निषेधी हवे भावपूजा करीश. प्रथम त्रण प्रदक्षिणा देवी. त्यार बाद त्रण खमासमणां देवां. त्रण दिशा तरफ जो. वू वर्जq. पछी वीर श्रासने बेसी बे हाथ जोड़ी चैत्यवंदन, नमुथ्थणं, जावंति बे, स्तवन, जयवीयराय विगेरे कहेयुं. पछी काउस्सग्ग करवो. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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