SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) वडीलनी अथवा 'माननीय पुरुषनी छबी अथवा तेनी कोई वस्तु पड़ी होय छे तो तेने जोइने ते पुरुष अने तेना गुणो जेम स्मरणमां आवे छे; तेम भगवंतनी मूर्ति जोइने पण थाय छे. प्रतिमाजीनु मुख जोइने वि. चार छ के, श्रा मुख के छ ? जे मुखे कोइना अवर्णवाद, मृषावाद के, हिंसाकारी वचन बोलाएलां नथी. तेमां रहेली जिव्हावडे रसेंद्रिना विषयोनु सेवन करेलु नथी, पण आ मुखवडे धर्मोपदेश देइने अनेक भव्य प्राणीओने संसारसमुद्रमांथी तास्या छे; माटे श्रा मुखने धन्य छे. श्रा नासिकावडे सुरभिगंध दुरभिगंध रूप घ्राणेंद्रिना विषयो- सेवन कर्यु नथी. श्रा चक्षुइंद्रिवडे पांच वर्ण रूप विषयोने सेव्या नथी, कोई स्त्रीना उपर कामविकारनी नजरे जोयुं नथी तेम कोइनी सामे द्वेषनी नजरे पण जोयुं नथी. मात्र वस्तुस्वभाव अने कर्मनी विचित्रता विचारीने समभावे रहेला छे. तेथी एव। नेत्रने धन्य छे. आ कर्णे करीने विचित्र प्रकारना राग रागणी सांभलवा रूप तेना विषय- सेवन करेलु नथी, परंतु प्रिय अप्रिय जेवा शब्दो काने पड्या तेवा समभावे सांभल्या छे. श्रा शरीरवडे कोइ जीवनी हिंसा के अदत्तग्रहण विगेरे कर्यु नथी. मात्र जीवरक्षा करी छे अने कोइ जीव दुःख पामे नहीं तेम वा छे. ग्रामानुग्राम विहार करी भव्यजीवोने संसारना दुःखमांथी उद्धर्या छे अने पोते कोनो क्षय करी केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट कर्यु छे. माटे श्रा प्रभुने धन्य छे. एओ परम उपगारी छे. तेथी तेमनी जेटली भक्ति करी शकुं तेटली क. रखी योग्य छे. श्रावी सुंदर भावना भगवंतनी मुद्रा देखवाथी उत्पन्न थाय छे. उत्तम प्राणीओ एवा प्रभुनी जल, चंदन, केसर, बरास, पुष्प, धूप, दीप, फल, नैवेद्यवडे पूजा करे छे. तथा आभूषणो चडावे छे. ए प्रमाणे पूजा करवामां यथाशक्ति द्रव्यनो व्यय करतां चिंतवे छे के, हुं जे द्रव्य पेदा करूं छु, ते पेदा करतां अनेक प्रकारनां पाप लागे छे. वली ते धन संसारी कार्यमां वापरूं छु तेथी पण उलटी पापनी वृद्धि करूं छं. म्हारे ए धनमांथी म्हारा प्रणाम पहोचे तेटलुं धन जो हुं प्रभुभक्तिमा Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy