SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५६ ) करेली वापरे तेथी शुं व्रत भंग थाय छे ? ते विषे जाणवुं जें आगार राख्या छे पण ते विषे शास्त्रमां कहेलुं छे जे दृढ प्रतिज्ञावान आगार सेवता नथी, पण जैनुं मन ढीलुं छे एटले रोगादिक सहन थता नथी परिणाम बगडी जाय छे एवं लागे तो व्रत उपर परिणाम राखवाने प्रायश्चि. त लेवानी भावना सहित वापरकुं. ते आगारवाली वस्तु सेव्यानुं पण प्रायश्चित्त कह्युं छे. तो ए अपवाद मार्ग छे, पण जे आगार नथी सेवतो ने शुद्ध स्वरूप उपर नजर राखे छे तेनी अपेक्षाए तो ए उतरतो छे. वली केटलाएक जीव पैसाना लोभथी एटले निर्दोष दवानुं खरच वधारे लागे छे तेना कृपणपणाथी दूषित दवाओ वापरे छे ए तो बहुज दूषण छे. एवा माणसो पैसानी कसरथी अभक्ष दवाओ वापरे छे ने पार्छु शुभ खाते द्रव्य वापरे छे, ते करतां शुभ खाते कमी वापरी भक्ष दवामां पैसा वापरे तो ए वधारे उत्तम नीति छे. वास्ते व्रत रहे एम कर एज कल्याणकारी छे. तेम जेना परिणाम बगडता होय तेमने आगार सेववानी मना करवी ते पण योग्य नथी. प्रश्नः - १८५ साधुजी गाममां प्रवेश करे तो तेमने वाजते गाजते सामैयुं करी तेडी लाववानुं शास्त्रमां कह्यं छे ? श्रीधर्मउत्तरः- श्राद्धविधिमां पाने २६८ मे एवो अधिकार छे के, घोषसूरीना नगरप्रवेशना ओच्छवमां बहोंतेर हजार टका श्रावके खरच कर्या छे. वली व्यवहार सूत्रनी भाष्यमां पाने १८२ मे छे तेनुं त्यां प्रमाण आप्युं छे जे प्रतिमाधर मुनि प्रतिमा पूरी थाय त्यारे नगर बहार रही गुरुने खबर आपे के, हुं श्राव्यो हुं. पछी गुरु, राजा प्रमुख जे श्रावक होय तेने जणावे. पछी श्रावक बडा आडंबरथी प्रवेश करावे तेथी शासननी प्रभावना थाय. घणा जीव धर्मना रागी थाय. ए वि - गेरे घणो दर्शाव श्राद्धविधिमा छे. माटे वडा आडंबरथी गुरु महाराज ने नगरप्रवेश कराववो. प्रश्नः–१८६ चोमासामां खांड विगेरेनो त्याग करवानुं कया शास्त्रमां छे ? Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy