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________________ ( २५२) माशातना लागे के नहि ? उत्तरः-ज्यां ज्ञान अने जिनप्रतिमाजी होय त्यां आहारनिहार स्त्री साथे भोग तथा हास्यादिक क्रीडा करवाथी आशातना थाय छे. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने ११७७ मे छे. सुधर्म सभामां थंभा छे, तेमां पुस्तक तथा प्रभुनी दाढाना दाबडा छे तेथी इंद्राणी साथे हास्यादि विनोद सुधर्म इंद्र त्यां करता नथी, तेम मनुष्ये पण करवो नहि. प्रश्नः-१७६ क्षयोपशम भावना समकितमां ने उपशम भावना समकितमां शुं फेर छे ? उत्तरः-क्षयोपशम भावनुं समकित छे तेने समकितमोहनी विपाक उदये छे, ने मिथ्यात्वमोहनी प्रदेश उदये छे ने उपशम समकितवाळाने मिथ्यात, मिश्र तथा समकितमोहनी विपाक उदय तथा प्रदेश उदयथी टली जाय छे. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने ११८३ मे छे. प्रस्नः-१७७ श्रावक उघाडे मुखे बोले तो उचित छे के नहि ? उत्तरः-श्रावके अवश्य मुखे वस्त्र अथवा हाथ अथवा मुहपत्ति राखी. ने बोलवू. उघाडे मुखे बोलवू नहि जोइए. ए संबंधी भगवतीजीमां गौतमस्वामी महाराजे प्रस्न पूछयुं छे जे इंद्र सावध भाषा बोले छे के निरवद्य भाषा बोले छे १ तेनो उत्तर भगवंते कह्यो छे जे, इंद्र जे वखत मुखे वस्त्र अथवा हाथ राखीने बोले छे ते वखत निरवद्य भाषा बोले छे अनेजे वखत उघाडे मुखे बोले छे ते वखत सावध भाषा बोले छे. एवी रीते पाने १३०२ मे अधिकार छे. प्रस्नः १७८ पूर्वनुं ज्ञान क्यां सूधी रहयुं ? उत्तरः-पूर्वनुं ज्ञान भगवानना निर्वाण पछी एक हजार वर्ष सूधी रहयु. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने १५०३ मे छे. प्रश्नः-१७९ प्रभुनुं शासन क्यां सूधी रहेशे ? उत्तर-एकवीश हजार वर्ष सूधी रहेशे. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने १५.४ मे छे. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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