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________________ ( २३८ ) हु महाराज तो जगतमा जेटला पदार्थ छे, ते सर्वे रूपी तथा अरूपीने जाणी देखी रह्या छे. आपणे तो सिद्ध महाराजना अनंतमे भागे पण जाणता नथी. ते आपणाथी अनंता पदार्थ जाणी देखी रह्या छे. तो अनंत सुख पण सिद्ध महाराजने छे. ते सिद्ध थाय छे. इहां कोइने शंका थशे जे नजरे लाडुवा जोया, पण खाधा विना शुं सुख ? ते विषे जाणवू जे लाडुवा खावामां पण रसइंद्रिने विषय ग्रहण करवानी शक्ति न होय, तो स्वादनं सुख नथी. जेम के कंइक रोग थयो होय छे त्यारे खारी वस्तु ने मोली कहे छे, मोलीने खारी कहे छे, एवा विषय लेवानी शक्ति बगडी जाय छे त्यारे लाड़वा केवा छे ? ते विषय लेवानी शक्ति न होय तेने लाडुवा सारा नबलानुं सुख थतुं न. थी. जेने लाडुवा सारा नबलाना विषय लेवानी शक्ति होय छे, तेज लाडुवानुं सुख जाणी शकशे. माटे खावाथी सुख नथी. लाडुवानो स्वा. द जाणवाथी सुख छे. उंघमां कोइ माणसना मुखमां साकर मूके, पण तेने कंइ साकरन सुख नथी. रोगी बेभान होय तेना मुखमां अमृत मूके ते खपी जशे, पण ते जाण्या विना अमृतनुं सुख नथी. माटे जे जे वस्तु जाणवामां आवे छे तेनु ज जगत्मां सुख छे, माटे मुक्तिमां तमाम वस्तु जाणवामां आवे छे तेथी तमाम सुख छ. वली भूख्या माणस खावामां सुख माने छे, जमेला माणसने जबराइथी कंइ खबरावे छे तो ते नाखुश थाय छे, पण ते सुख मानता नथी तेमज मुक्त आत्माने भूख लागती नथी, एटले जमवानी इच्छा थती नथी. धराएलो माणस खा. वानी इच्छा करतो नथी, तेम सिद्ध महाराजने इच्छा थती नथी. सदा घरायेला छे. कोइ दिवसे भूख लागती नथी, ने खावानी इच्छा थती नथी. इच्छाप्रो जडनी संगते थाय छे. ते जडनी मंगत छूटी गइ छ अने स्वआत्मानी दशा छे तेवी प्रगट थइ छे. स्वदशामां कोइ प्रकार नी जडनी इच्छा छ ज नहि. विकल्प पण ज्यां सुधी जडनी संगत होय त्यां सुधी थाय छे सिद्ध महाराजने ते जड संबंध नथी तेथी कोइ पण Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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