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________________ (२१४ ) वृत्ति जारी छे, तेटला विकल्प आवशे. एम जाणी खावाना, पीवाना, बेसवाना, सूवाना, फरवाना, तमासा जोवाना, व्यापारना, स्त्रीओना विष. यना जेटलां जेटलां कारणो छूटे ते छोड के जेथी तारो आत्मा समा. धीमां रहे. ने छूटे तेमां पोतानी अज्ञानता विचारे छे के हजु महारुं मन जडथी खसतुं नथी, माटे सत्पुरुषनी सेवा करुं तथा जेथी संसारथी मन खसे एवा शास्त्रनो अभ्यास सांभलवा वांचवानो करुं के कोइ वखत ए उपदेशरूप अमृते करी मारुं चित्त सुंदर थइ जाय, ने विभावथी चित्त खशी जाय. ने स्वभाव सन्मुख थाय. एम भावी तन मन अने धनथी ज्ञानादिकनो अभ्यास करे छे, ते ज्ञान साधनमां कंइ विन न आवे ते "सारु सामायक पौषध देशावगाशिक करे. वली विशेष सामर्थ्य जागे तो ध्यान करु एम विचारी आर्तध्यान रौद्रध्याननो त्याग करी धर्मध्यान करे के जेथी आत्मा निर्मल थाय अने निज स्वरूप सन्मुख थउं. एम भावी ध्यानादिकनो उद्यम परवस्तुथी खंसवा माटे करे. एम अनेक प्र. कारना उद्यम आत्मार्थी करी रह्या छे. हरेक प्रकारे आत्मानी प्रवृत्ति विभावथी छूट ए सामी दृष्टि बनी रही छे. संसारनुं स्वरूप विचारतां जेम कोइ पुरुष घरमां होय अने चारे पासे आग लागे तो ते घरमांथी निकलवाने जेवो उद्यमवान थाय, तेम आत्मार्थीने संसार दावानल जेवो लागे छे. जे जडनी प्रवृत्ति करे छे तेमां आनंदितपणुं थतुं नथी. एक विटंबना जाणी करे छे. ए दशा पण आत्मा निर्मल थवानी छे. आ संसारमा सर्व चीज छे तेमा स्त्री आदिकनां काम सर्वथी वधारे दुःखदायक छे. कारण जे काम जेने वश थयो तेने पछी बीजी उपाधि छोडवी दुर्लभ पडती नथी ने जेने काम न छूटे तो तेने उपाधि केम छूटे ? कामने सारु स्त्री जोइए. स्त्रीने सारु आभूषण जोइए, तेने सारु * द्रव्य जोइए. द्रव्य सारु व्यापार करवों जोइए. व्यापार सारुं उधुं चतुं करे, ठगाइ करे, अन्याय करे, अनेक आरंभ करे. वली स्त्री होय तो छोकरी याय, छोकरां थाय तो परणाववां जोइए. वली ते सारु, न्यात Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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