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________________ ( २०५ ) तेनं रक्षण करे छे ने नवं व्याज विगेरे उत्पन्न करी धन वधारी आपे के तेम ज्ञान तथा भावनाओ जे पुद्गलमा मलीने करवी ते आत्मरूप. थी पररूप देखातुं बहारथी छे, पण वस्तुपणे प्रात्माने आत्म स्वरूपे जाणे. अडने जड स्वरूपे जाणे. आत्माने निरावरण करवानो उद्यम करी रह्यो छे. विषय कपायनां काम ओछां थतां जाय छे अने पूर्वनां कर्म क्षय थतां जाय छे. ए बधुं काम पर वस्तुथी थाय छे. माटे ज्यां सुधी केवलज्ञान नथी प्रगट थयुं त्यां सुधी भावनामो विगरे बहुज उपकार करे छे. पण जेम दीकराने तथा मुनमने वस्तुपणे बाप जूदा जाणे छे, तेम वस्तुधर्म ओलखवापणे जे ज्ञान आत्म उपयोगना, ते अवधि मन प. येव केवलज्ञान तथा मति श्रुतज्ञान इंद्रियजनित छे. तेने ते रूपे जाणवां; पण आत्मजनित ज्ञान प्रगट नथी थयु. त्यां सुधी आ ज्ञाननो अ. भ्यास छोडी दे तो एनां आवरण शी रीते नाश पामे ? एम जे जे रीते सर्वज्ञ महाराजे बताव्यं छे तेम सेवीने आत्मानो आत्मभाव प्रगट कर. वो. जेम जेम आत्मा विशुद्ध थाय, तेम तेम नीचली प्रवृत्ति छोडता ज. वी छे अने समभाव वधारतां जवो छे. जे जे परभावना संयोगथी सुख दुःख अनुकूल शरीरे बने छे, तेमां पोतानो समभाव छोडतो नथी. कोइ मारी जाय छे. कोइ पूजी जाय छे, कोइ गालो दे छे. कोइ गुणग्राम करे छे ते सर्वमां समवृत्ति छे. एवा गुण जेम जेम वधे, तेम तेम जाणवू जे, हुं चढते पगथीए छु. तेथी गुणस्थाने चढ्यो पण समजाय, ने जेम जेम गुणस्थाने चढे, तेम ज्ञानीए निचली प्रवृत्ति छोडवानी बतावी छे तेमज छोडवी. एवा पुरुषो तो मर्यादा प्रमाणे जे वर्त्तशे, ने वीतरागना ज्ञानथी स्वचेतनने चेतन रूपे जाणशे. पर पुद्गलने पुद्गल रूपे जा. णशे. आत्मा अक्रियपणे जाणशे. क्रिया पुद्गलने संगे थाय छे ते पण जाणशे. ज्यां सुधी आत्मानो अक्रिय गुण प्रगट नथी थयो, त्यां सुधी नीचेथी जेम जेम उंचो चढे छे, ने जेटलुं जेटलुं शुद्ध स्वरूप प्रगट थाय छे, तेटली तेटली क्रिया छोडतो जाय छे. दशा तो अक्रिय पदनी भावे Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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