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________________ (२००) पदगल हतां ते खश्यां त्यारे आत्मधर्म जाणवाने माटे शास्त्र सांभ नी रुचि थइ त्यारे इहां पण आत्मा निर्विकल्पमय हतो तेना अंश खला थया पछी अनुक्रमे जेम जेम शास्त्र सांभलवा मनन करवानुं विशेष थयं. तेमतेम आत्मानां आवरण खसतां गयां तेम तेम जीव निर्विकल्प थयो पण जीवने प्रथमथी ज निर्विकल्पदशा थती नथी. माटे निर्विकल्पी पुरुषोए जेम अनुक्रमे गुणस्थानको बताव्यां छे ते प्रमाणे अनुक्रमे गुणस्थान चढी निर्विकल्पी पुरुष जे भगवान् तेमणे व्यवहार रूप चडवानी रीति दर्शावी छे, तेना अर्थि जीव वर्ते छे तेने तेमां जेटली जेटली निर्विकल्प अंशनी दशा प्रगटे छे तेथी ते आनंदित थाय छे अने देवपूजा श्रावकनां व्रत मुनिनां व्रत प्रतिक्रमण भावना ध्यानादिक सर्वे करणी पोतानी निर्विकल्पदशाने सारं करे छे एम करता करतां अनुक्रमे निर्विकल्पदशा पूर्ण थाय छे. प्रश्नः-१४० आत्मा परभावनो अकर्ता कह्यो छे ने आ प्रवृत्ति तो क"पणे थाय छे ते केम ? उत्तरः-तमारी वात सत्य छे, निश्चय नये अात्मा परभावनो अकर्ता छे. तेमज व्यवहार नये कर्त्ता पण कह्यो छे. ने व्यवहार नये कर्त्ता न मानीये तो आत्माने श्रावरण पण न लागे, ने आवरण न लागे तो तेने मुक्त थवा, पण नथी. ज्यारे मुक्त थवानुं बाकी रह्यं नहि त्यारे तो सर्व जीव सर्वज्ञ जेवा होवा जोइए. ते तो जाणता नथी, त्यारे प्रभुजी ए व्यवहार नये का कह्यो छे ते सिद्ध थाय छे, आत्मा व्यवहार नये कर्मने योगे कर्ममय परिणत थइ विभावमय पुद्गलनी करणी विषय कषायनी करी रह्यो छे. हवे व्यवहार नये कर्मबंधनां कारण सेवेछे पण तेमांथी भवितव्यताना योगे कंइक स्वाभाविक कर्मथी हलको थयो ने जेम कोठीमा दाणा थोडा नांखे ने घणा काढे तो सहजे दाणा कोठीमांथी ओछा थाय. तेमज जीव वधारे कर्म भोगवे ने अकाम निर्जरा करे ने .. नवां थोडां बांधे तेथी हलको थाय, तेथी वितराग सर्वज्ञ पुरुष उपर Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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