SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५२ ) अक्षर अनुक्रमे समरवा, पछी ए कमलनी केशरांमां सोंले स्वर अ, आ विगेरे समरवा पछी सुखे करी संचरतुं कांतिमंडल मांहे रहेतुं निर्कलंक उज्वल चंद्रबिंब सरखुं मायाबीज ही कार मंत्र समरीए. तेवार पछी ते पांखडीओने विषे भमतुं आकाशमंडलमां संचरतुं, मनोमल विनासतुं, अमृतरस स्रवतुं तालु मार्गे जतुं भममांही उलासतुं, जलहलाट करतुं त्रिलोक्य विभुत्वेन रहे, अचित्य महिमानो देनार अद्भुत आश्चर्यकारीओ चंद्र सूर्यना तेजने जीपतुं ज्योतीमय साक्षात् तेज रूप अति पवित्र निःपा प ए मंत्र एकचित्ते मन वचन कायानी एकाग्रताए ध्यातां जे पाप कर्म कीधां छे, तेनो विनाश थाय अने श्रुतज्ञान सकल वचनमय शब्दब्रह्म प्रगट थाय. एवी रीते निश्चल मन करी छ महीना अभ्यास करवाथी मुखमांथी धुम्रशिखा नीसरती देखे. एक वरस अभ्यास करवाथी मुखमांथी अग्निज्वाला नीसरती देखे पछी विशेष श्रभ्यासे सर्वज्ञनुं मुखकमल देखे पछी विशेष अभ्यास करवाथी अष्टकर्म रहित कल्याण माहात्म्य आनंद रूप समग्र अतिशय संयुक्त प्रभामंडलमां रहे. साक्षात् प्रगट सव वीतरागने देखे पछी निश्चय मन थाय. मननो वेपार जीतीने ते पर मेश्वरना स्वरूपने विषे एकाग्र मन करी संसार रूपी भयंकर वनने परि० हरी पछी सिद्धिमंदिर मुक्तिमंदिर आश्रये एटले पामे. वली प्रकारांतरे जो गीश्वरे मंत्राधिराज हकारने उपर अने हेठल रेफ संयुक्त कलाबिंदु सहित अनाहत नाद संयुक्त अर्हे कनक सुवर्णनुं कमल ते मांही रह्यो निःकलंक चंद्रबिंब सरखो निर्मल, श्रति उज्वल, चपल आकाशे फरतो, दश दिशाए व्यापतो, मुखकमले प्रवेश करतो, ने मांहोमांहे भ्रमतो, नेत्र प्रत्ये स्फुरतो ललाट मध्ये रहेतो, तालु मार्गे निसरतो, अति बहुल शरीरने आनंद परम निर्भर सुख उपजावतो, अमृतरस स्रवतो, श्रति उज्वलपणे चंद्रमंडल साथै स्पर्धा करतो, ज्योति शरीरमां स्फुरती आकाश मंडलमा संचरता शिव श्री मोक्षलक्ष्मीषु एक भावना श्रीने सर्व अत्रयत्र संपूर्ण कुंभक करी एटले स्वासोश्वास स्थिर करी एकाग्रताए ए रीते घ्यावं. तेथी Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy