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________________ ( १०९ ) छे. अति विशुद्ध अध्यवसाय थया छे. जड चेतननो केवल विभाग करता जाय छे. शुक्लध्याननो पहेलो पायो पृथक्त्ववितर्क मप्रविचार नामे ध्यानमां ध्याय छे. नवमुं अनुवृतिबादर गुणस्थान. ए गुणस्थानमा अतिशय विशुद्ध श्र. ध्यवसाय थाय छे. आठमाना अंतमां हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा ए छ प्रकृतिनो अंत थाय छे. आ गुणस्थानमां ए छए प्रकृतिनो उदय नथी. इहां शंका थशे के आठमुं गुणस्थान पाम्या त्यां एनी प्रवृत्ति हती ? ते विषे समजवू के लोकनी रीतना तो छठा गुणस्थानथी नीकली गया छे, पण आत्माना गुण स्वभाविक प्रगट थाय छे ते जोइने हरख थाय छे. ते रूप हास्य तथा रति छे, तथा अरति परभाव उपर छे. भय पण पोताना भाव चलायमान थाय तेनो छे. शोक पण कर्मथी आत्मा मलीन थयो तेनो छे. दगंछा पण स्वभाविक पर परिणतीनी छे. आ छए स्वभाविक छे. एनुं विस्तारे स्वरूप विचारसारनी टीकामां करेलुं छे. ए नवमा गुणस्थानना अंतमा संज्वलना क्रोध, मान, माया, तथा स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, एनो अंत थाय छे त्यारे दशमुं गुणस्थान पामे छे. दशमुं सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान. ए गुणस्थानमां सूक्ष्म लोभनो उदय रह्यो छे. ते अति विशुद्ध भावे दशमाना अंतमा ए लोभनो क्षय थाय छे. हवे जे उपशमभावे श्रेणि मांडी होय, ते अगीयारमे गुणस्थाने जाय. कारण जे गुणस्थान उपशमभावनुं छे. क्षायकभावनुं गुणस्थान नथी. तेथी क्षायकभाववाला बारमे गुणस्थाने जाय छे. अगीयारमुं उपशांतमोह गुणस्थान. ए गुणस्थानमां मोहनीकर्मनो उदय तो नथी होतो, पण सत्ताए रहे छे. तेना जोरथी परिणाम पाछा पडी जाय छे. तेथी ए गुणस्थानकथी चढता नथी पण पडे छे. कदापि आयुष्य आवी रह्यं होय ने मरण करे छे, तो सर्वार्थसिद्धि विमानमां जाय छे. त्यांथी मनुष्यमां श्रावीने मुक्ति जाय छे. बारमुं क्षीणमोह गुणस्थान. ए गुणस्थानमां वीतरागपद थाय छे. ए Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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